आशाएं
हंसें दिल की , उम्मीदें खिले दिल की , अब मुश्किल नहीं कुछ भी , नहीं कुछ
भी.....
पिछले हफ्ते मेरा एक सपना पूरा हुआ,जो आज से करीब 4 साल पहले मैंने देखा था | 4 साल पहले जब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के डोंगरगढ़ में मैंने पहली बार दर्शन करे थे , तब मैंने ऐसा अनुभव किया था कि 'मेरे नैना सावन भादो , फिर भी मन प्यासा ' |
दरअसल , तब आचार्य श्री के इतने करीब होने के बाद भी , सिवाय उनके दर्शन के ,हम कुछ भी नहीं कर पाये थे | हालाँकि आचार्य श्री के दर्शन पाकर ही मन बहुत अधिक प्रफुल्लित हुआ था ,पर फिर भी मन में एक कसक थी कि कितना अच्छा होता कि अगर हम आचार्य श्री को आहार दे पाते, उनकी वैयावृत्ति कर पाते, उनके चरण स्पर्श के साथ आचरण स्पर्श का वादा कर पाते , उनके समीप जाकर उनसे घण्टो ज्ञानोपदेश ले पाते |
आने वाले सालो में हमने आचार्य श्री के कई बार दर्शन किये (रामटेक, विदिशा ,बीना बारह , तारादेही ) और भगवान की कृपा से हमने अपने मन में जो उम्मीदें , जो आशाएं संजोयी थी, वो धीरे-धीरे करके पूरी होने लगी | चाहे वह रामटेक में पहली बार आचार्य श्री की वैयावृत्ति करने का अवसर मिला हो या बीना बारह में अपने दिल की बात आचार्य श्री तक पत्र के माध्यम से पहुंचाना , सब में असीम आनंद की अनुभूति हुई |
पर कुछ उम्मीदें, कुछ आशाएं ऐसी थी , जो मन के समुन्द्र में अठखेलिया तो खेलती थी , पर आचार्य श्री के पास इतनी भीड़ देखकर वो उम्मीदें , वो आशाएं चुप चाप सो जाया करती थी |
पर कहते है न , समय से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नही मिलता | ऐसा ही कुछ हमारे साथ हुआ और यही से शुरू होती है, एक भगवान (गुरु) के द्वारा अपने भक्त की वंदना सुनने और उसके अमर होने की अनुभव यात्रा |
24 जून ,2016 की शाम को हम 3 दोस्त ( आयुष जैन , वैभव जैन और मैं ) कुंडलपुर बड़े बाबा और छोटे बाबा के दर्शन हेतु दिल्ली से निकल पड़े | हालांकि गर्मी को देखते हुए , कुंडलपुर जाने का प्रोग्राम कई बार डगमगाया , पर फिर भी हम मन को पक्का करके निकल पड़े |
पर जैसे ही हम लोग 25 जून को दमोह स्टेशन पहुंचे और कुंडलपुर जाने के लिए बस में बैठे, तभी हमें पता चला कि आचार्य श्री का कुंडलपुर से आज ही विहार हो रहा है | यह खबर सुनकर जैसे मन तो एक बार बिलकुल टूट सा गया | सोचा था कि बड़े बाबा और छोटे बाबा के साथ दर्शन करेंगे , पर यह क्या , आचार्य श्री का विहार | अब क्या करेंगे - यह सोच सोच कर मन व्यथित सा होने लगा |
मैं मन ही मन प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान ! आचार्य श्री का विहार कल के लिए पोस्टपोन हो जाये या फिर हमें किसी भी प्रकार से आचार्य श्री के दर्शन से जाए | इसी प्रार्थना को मन में लिए हम बस में बैठे आगे बढ़ते है और मन एक भजन गुनगुनाने लगता है ---
“हे गुरु विद्यासागर ! मेरी ओर नजर कर दो,,,,करते हो कृपा सब पर , मुझ पर भी कृपा कर दो ||”
जब हम कुंडलपुर से करीब २-३ km दूर होते है, तो पता चलता है कि आचार्य श्री का उसी मार्ग से विहार हो रहा है | यह सुनकर तो जैसे मन में एक नयी तरंग दौड़ पड़ी हो | हम सब बस में से जल्दी जल्दी उतरते है ओर तभी हमें आचार्य श्री की पहली झलक के दर्शन मिलते है | आचार्य श्री के दर्शन पाकर हमारे टूटे मन को एक सम्बल मिला और हमने सोचा कि चलो , आज आचार्य श्री के विहार में ही सम्मिलित हो जाते है |
कहते है न कि जो होता है , अच्छे के लिए होता है | आज इस यात्रा के माध्यम से ही हमें आचार्य श्री के विहार में सम्मिलित होने का पहली बार अवसर मिला | 'ईर्या समिति' किसे कहते है , यह आचार्य श्री के विहार में जाना | आचार्य श्री की नजर पूरे रास्ते नीचे थी और जमीन पर चल रहे सूक्ष्म जीवो के प्रति संवेदना व्यक्त कर रही थी | जगह-जगह ग्रामीण व्यकि आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन के लिए पलके बिछाए बैठे थे |
आचार्य श्री के साथ विहार करते हुए हम पटेरा जी पहुंचे और वहां आचार्य श्री आहार चर्या के लिए रुक गए | यह पटेरा जी गांव कहने को तो बहुत ही छोटा सा गांव है, पर आज इस गांव की किस्मत किसी महानगर जैसे दिल्ली की किस्मत से भी बड़ी प्रतीत हो रही थी क्यूंकि आचार्य श्री आज उसकी धरा पर पधारे है |
आचार्य श्री तो ऊपर मंदिर में चले गए और सारी भीड़ उनके पीछे | हम लोग बाहर ही रह गए और सोचने लगे कि अब क्या करें | पहले सोचा कि पटेरा ही में रुक जाते है और यही पर शुद्ध वस्त्र धारण करके आहार चर्या में शामिल हो जाएंगे | पर वहां उचित व्यव्श्था न देखते हुए , हमने बिना पल गवाए यह सोचा कि चलो कुंडलपुर चलते है और आहार चर्या तक नहा धोके फिर से पटेरा जी आ जायेंगे |
बाबा के आशीर्वाद से जैसे ही हम पटेरा से बाहर निकले, हमें एक दम से एक अंकल मिल गए जो कुंडलपुर ही जा रहे थे | हम लोग उनके साथ उनकी गाडी में बैठ गए और कुंडलपुर पहुंच गए |
कुंडलपुर पहुंच कर हमने सोचा कि चलो एक रूम की बात कार्यालय में जाकर कर लेते है, पर वह इतनी भीड़ थी कि रूम मिलना असम्भव सा ही प्रतीत हो रहा था |
फिर अचानक से हमें एक आंटी मिलती है और उनसे हम पूछते है कि क्या उनके आवास स्थल में हम फ्रेश हो ले | आंटी ने बड़े ही प्रेम से हमारी विनती सुन ली और अपने आवास स्थल में फ्रेश होने के लिए अनुमति दे दी |
यह भी बड़े बाबा का आशीर्वाद था कि हमें एक दम से फ्रेश होने के लिए रूम मिल गया | हम लोग खुश थे क्यूंकि अब हम समय से आहार चर्या देखने के लिए पटेरा जी पहुंच सकते थे | पर यह क्या , जैसे ही हम अंदर रूम में पहुंचे , हमें पता चला कि हमारे पास तो सफ़ेद धोती है ही नहीं और आचार्य श्री और संघ सिर्फ सफ़ेद धोती वालो से आहार लेते है |
अब एक और समस्या जान को खड़ी हो गयी | अब क्या करें ? पर लगता है उस दिन बड़े बाबा जी हमारा हर पल साथ दे रहे थे | जैसे ही हम फ्रेश होकर बाहर आते है , तो हमें एक फ्लेक्स लगा मिलता है , जिस पर लिखा था कि :' शुद्ध सोले के सफ़ेद धोती दुप्पटे के लिए संपर्क करे |'
हम एक दम से उन दीदी के पास पहुंचे और उन से सोले के वस्त्र लिए(पॉलिथीन में पैक्ड) और पटेरा जी के लिए निकल पड़े | इस बार भी हमें एक सज्जन मिल गए जो छत्तीसगढ़ से आचार्य श्री के दर्शनार्थ आये थे | उन्होंने हमें आराम से समय पर पटेरा तक पंहुचा दिया |
पटेरा पहुंच के हमने देखा कि वहां भीड़ पहले से बढ़ गयी है और वहां आचार्य भक्ति चल रही है | आचार्य भक्ति के बाद आचार्य श्री आहार के लोए उठते है| पर अभी समय था , तो हमने वहां पर विराजमान अन्य मुनियों के दर्शन किये और थोड़ी देर सौम्य सागर जी महाराज के पास बैठ गए |
फिर थोड़ी देर में , हम ने सोले के शुद्ध वस्त्र धारण किये और उन लोगो के समीप जाकर खड़े हो गए , जो पहले से ही वहां पड़गाहन के लिए खड़े थे |
पहले हम एक दीदी के पास उनकी अनुमति लेकर उनके ग्रुप के साथ खड़े हो गए , पर फिर हमने सोचा कि शायद यहाँ पर आचार्य श्री का आहार न हो और हम उनके ही बगल में एक दूसरे अंकल आंटी के साथ उनकी अनुमति लेकर खड़े हो गए |
आचार्य श्री सीढ़ियों से नीचे उतरते है | चारो तरफ 'हे स्वामी, नमोस्तु ,नमोस्तु ,नमोस्तु ' की वाणी गुंजायमान होने लगती है जो मेरे कानो को एक अलग सा सुखमय अनुभव प्रदान करती है | हम आचार्य श्री के राइट साइड पर खड़े थे | मेरे मन ने कहा कि अगर आचार्य श्री राइट साइड को मुड़े तो आज कुछ अच्छा वाला है तेरे साथ |
और यह क्या | आचार्य श्री राइट साइड को ही मुड़ जाते है | मैं बहुत बहुत खुश हुआ | आचार्य श्री धीरे धीरे आगे बढ़ते है और एक दम से हमारे बगल वाले अंकल (जहां दीदी भी खड़ी थी ) , वहां पर रुक जाते है | सब लोग आचार्य श्री की परिक्रमा करने लगते है|
हम भी बिना सोचे समझे उन्ही लोगो के साथ हो लेते है और आचार्य श्री की परिक्रमा करने लगते है | परिक्रमा करते करते मेरा मन बहुत ज्यादा ख़ुशी के मारे पागल हुआ जा रहा था और जो उम्मीद, जो आशा आचार्य श्री को आहार देने की ४ साल पहले संजोयी थी , वह भी जोर जोर से अठखेलिया खेलने लगी |
परिक्रमा करने के बाद सब लोग आगे बढ़ते है , उन सज्जन के घर की ओर, जिनके यहाँ आहार था | हम भी उन अंकल के साथ ही हो लिए | वो अंकल घर के मुखिया थे , जिनका नाम श्री प्रेम जी था | हम उनके साथ चलने तो लगे , पर मन ख़ुशी के साथ साथ डर भी रहा था और यह डर हर कदम के साथ बढ़ता जा रहा था | हम इस ग्रुप के साथ हो तो लिए थे , पर भीड़ को देखते हुए हम सोचने लगे कि क्या पता हमें अंदर ही न जाने दिया जाए | मन में अलग अलग विचार आ रहे थे पर पता नहीं क्यों, एक आशा भी थी कि आज तो कुछ अच्छा ही होगा |
हम उन अंकल के साथ साथ धीरे धीर आगे बढ़ते है और उनके साथ ही उनके घर में एंटर कर लेते है | आचार्य श्री भी आ जाते है और एक दम से दूसरे लोग एंट्री गेट बंद कर देते है |
चलो अब हम किसी तरह अंदर तो आ गए, पर असली परीक्षा तो अब थी हमारी | वहां अंदर भी काफी लोग आ गए थे | हालांकि , वो सभी उनके घर वाले ही थे, जो काफी दिनों से कुंडलपुर में चौक लगा रहे थे और जिन्हे आज इतने दिनों बाद यह मंगल अवसर मिला था |
इतने अधिक लोगो को देखकर हम लोगो को उस कमरे से बाहर कर दिया गया, जिसमे आचार्य श्री का आहार हो रहा था | मन फिर से टूट गया कि मंजिल के इतने पास होकर भी मंजिल तक पहुंच नही पाएंगे | पर फिर भी हमने हिम्मत नहीं तोड़ी, और हम चुप चाप पीछे लाइन में खड़े रहे |
हमने कई बार कोशिश की कि हम किसी तरह उस कमरे में घुस जाए | हमने उस भाई से भी कही बार कहा, जो भीड़ कंट्रोल कर रहा था हमें सिर्फ एक बार अंदर आने का मौका दे दे पर हम हर बार असफल ही हो रहे थे |
अचानक से एक अंकल आते है और उस भीड़ कंट्रोल करने वाले लड़के को डांटते है | इसके परिणामस्वरूप वो सबको अंदर आने देता है |
अब हम कमरे में तो घुस गए | अब बारी थी कि आचार्य श्री को आहार देने का अवसर कैसे मिले ? मैं एक भैया एक पास जाकर खड़ा हो गया , जो आचार्य श्री को एक टॉवल से हवा कर रहे थे | मैंने उनसे कहा कि मैं करूँ क्या हवा ? उन्होंने मना कर दिया |
मैं फिर चुप चप वहां खड़ा हो गया | मैंने सोचा कि शायद हमें अवसर न मिले आचार्य श्री को आहार देने का , इसलिए जो भाई मेरे आगे आचार्य श्री को आहार दे रहे थे मैंने उनके हाथ को ही टच कर लिया कि चलो इसी तरह आहार देने का मौका मिल गया, इसी से संतोष ले लो |
पर शायद भगवान को कुछ और ही मंजूर था | वो भाई मुझे एक दम से उनके हाथ वाली कटोरी पकड़ा देते है जिसमे दाल होती है | मैं बता नहीं सकता कि मैं कितना खुश हुआ कि चलो finally मेरी बारी आ ही गयी |
पर यह क्या जैसे ही मैंने चमच में दाल ली और आगे आचार्य श्री को देनी चाही , आचार्य श्री ने दाल लेना ही बंद कर दिया |
मुझे ऐसा लगा कि कितना bad luck है मेरा, जैसे ही दाल वाली कटोरी आई , आचार्य श्री ने दाल लेना बंद कर दिया |
मैं १-२ min वहाँ चुपचाप खड़ा रहा और आचार्य श्री को समीप से बस निहारता रहा | एक दम से मुझे एक आंटी से एक कलश लेने का मौका मिलता है जिसमे जल में लाल रंग की कोई औषधि मिली होती है |
वो कलश मेरे हाथ में आता है और मैं आचार्य श्री को वो जल देने के लिए हाथ आगे बढ़ाता हूँ | पता नहीं क्यों ,मेरे हाथ काँपने से लगते है | शायद मेरे हाथो को कांपता हुआ देखकर आचार्य श्री मेरी तरफ देखते है और मुस्कराने लगते है |
मैं बता नहीं सकता कि मैं कितना कितना khushhhhhhhhhhhhhhhhh हुआ | मैंने आचार्य श्री को वो औषधि वाला जल दिया और वो कलश अपने दोस्त आयुष को पकड़ा दिया जो मेरे पीछे ही खड़ा था |
औषधि देकर मैं बाहर आ गया और आयुष व वैभव भी आचार्य श्री को आहार देकर बाहर आ गए | हम सब बहुत प्रसन्न थे |
इसके बाद हम सबने मिलकर आचार्य श्री की आरती करके उन्हें उनके संयम का उपक्रम उनकी पीछी सौंपी | फिर हम आचार्य श्री के साथ मंदिर तक गए |
एक आशा , एक उम्मीद जो ४ साल से मन के किसी कोने में सोई पड़ी हुई थी, आज उसके पुरे होने पर वह उम्मीद , वह आशा पुरे संतोष के साथ खिल खिलाकर हँस रही थी |
मन में ख़ुशी थी पर साथ ही साथ एक कर्तव्य का बोध भी था | हम सबने मन ही मन वादा किया कि जिन हाथो से आज आचार्य श्री को आज आहार दिया है, उन हाथो से कभी भी कोई बुरा कार्य नहीं करेंगे, किसी जीव को कभी नहीं सतायेंगे |
इसके बाद हम पटेरा से वापिस कुंडलपुर आ गए और वहां हमें हमारे पुराने दोस्त ऋषभ जैन और नमन जैन अचानक से मिल गए |
आज मन में पूरा आत्मविश्वास था कि इस दुनिया में कोई भी चीज असम्भव नहीं | अगर तुम पूरी शिद्दत से किसी चीज को पाने की इच्छा रखो , तो यह पूरी कायनात तुम्हे उससे मिलवाती है |
इस तरह हमारी यह आचार्य श्री को आहार देने की अनुभव यात्रा सम्पन हुई | मैं नहीं जानता कि आज किस के निमित्त से हमें आचार्य श्री को आहार देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | इसलिए मैं इस अनुभव यात्रा में जिस जिस ने भी हमारी हेल्प करी, मैं उसका तहे दिल से शुक्रिया करना करना चाहता हूँ | चाहे वह गाडी वाले अंकल हो या धोती वाली दीदी या जिनके घर में हम आहार दे पाये या वैभव जो पहली बार हमारी साथ आचार्य श्री के दर्शन करने आया , मैं सबको धनयवाद देता हूँ |
हो सकता है इस पूरी अनुभव यात्रा में हमसे कोई गलतियां हुई हो, उन सब के लिए भी मैं सबसे क्षमा चाहता हूँ |
४ साल पहले शुरू हुई इस आध्यात्मिक यात्रा में काफी लोग जुड़े | इस यात्रा के दौरान हमने काफी नए दोस्त बनाए तो कई पुराने दोस्तों के साथ रिश्ते मजबूत हुए |मैं उन सभी दोस्तों को भी शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ क्यूंकि उनकी वजह से यह यात्रा ४ सालो तक जीवंत रह सकी |
आज मैं एक नयी उम्मीद , एक नयी आशा करता हूँ कि आने वाले समय में हम सब मिलकर चौका लगाएंगे और आचार्य श्री का हमारे यहाँ पड़गाहन होगा और हम सब अच्छे से आचार्य श्री को आहार दें |
पिछले हफ्ते मेरा एक सपना पूरा हुआ,जो आज से करीब 4 साल पहले मैंने देखा था | 4 साल पहले जब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के डोंगरगढ़ में मैंने पहली बार दर्शन करे थे , तब मैंने ऐसा अनुभव किया था कि 'मेरे नैना सावन भादो , फिर भी मन प्यासा ' |
दरअसल , तब आचार्य श्री के इतने करीब होने के बाद भी , सिवाय उनके दर्शन के ,हम कुछ भी नहीं कर पाये थे | हालाँकि आचार्य श्री के दर्शन पाकर ही मन बहुत अधिक प्रफुल्लित हुआ था ,पर फिर भी मन में एक कसक थी कि कितना अच्छा होता कि अगर हम आचार्य श्री को आहार दे पाते, उनकी वैयावृत्ति कर पाते, उनके चरण स्पर्श के साथ आचरण स्पर्श का वादा कर पाते , उनके समीप जाकर उनसे घण्टो ज्ञानोपदेश ले पाते |
आने वाले सालो में हमने आचार्य श्री के कई बार दर्शन किये (रामटेक, विदिशा ,बीना बारह , तारादेही ) और भगवान की कृपा से हमने अपने मन में जो उम्मीदें , जो आशाएं संजोयी थी, वो धीरे-धीरे करके पूरी होने लगी | चाहे वह रामटेक में पहली बार आचार्य श्री की वैयावृत्ति करने का अवसर मिला हो या बीना बारह में अपने दिल की बात आचार्य श्री तक पत्र के माध्यम से पहुंचाना , सब में असीम आनंद की अनुभूति हुई |
पर कुछ उम्मीदें, कुछ आशाएं ऐसी थी , जो मन के समुन्द्र में अठखेलिया तो खेलती थी , पर आचार्य श्री के पास इतनी भीड़ देखकर वो उम्मीदें , वो आशाएं चुप चाप सो जाया करती थी |
पर कहते है न , समय से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नही मिलता | ऐसा ही कुछ हमारे साथ हुआ और यही से शुरू होती है, एक भगवान (गुरु) के द्वारा अपने भक्त की वंदना सुनने और उसके अमर होने की अनुभव यात्रा |
24 जून ,2016 की शाम को हम 3 दोस्त ( आयुष जैन , वैभव जैन और मैं ) कुंडलपुर बड़े बाबा और छोटे बाबा के दर्शन हेतु दिल्ली से निकल पड़े | हालांकि गर्मी को देखते हुए , कुंडलपुर जाने का प्रोग्राम कई बार डगमगाया , पर फिर भी हम मन को पक्का करके निकल पड़े |
पर जैसे ही हम लोग 25 जून को दमोह स्टेशन पहुंचे और कुंडलपुर जाने के लिए बस में बैठे, तभी हमें पता चला कि आचार्य श्री का कुंडलपुर से आज ही विहार हो रहा है | यह खबर सुनकर जैसे मन तो एक बार बिलकुल टूट सा गया | सोचा था कि बड़े बाबा और छोटे बाबा के साथ दर्शन करेंगे , पर यह क्या , आचार्य श्री का विहार | अब क्या करेंगे - यह सोच सोच कर मन व्यथित सा होने लगा |
मैं मन ही मन प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान ! आचार्य श्री का विहार कल के लिए पोस्टपोन हो जाये या फिर हमें किसी भी प्रकार से आचार्य श्री के दर्शन से जाए | इसी प्रार्थना को मन में लिए हम बस में बैठे आगे बढ़ते है और मन एक भजन गुनगुनाने लगता है ---
“हे गुरु विद्यासागर ! मेरी ओर नजर कर दो,,,,करते हो कृपा सब पर , मुझ पर भी कृपा कर दो ||”
जब हम कुंडलपुर से करीब २-३ km दूर होते है, तो पता चलता है कि आचार्य श्री का उसी मार्ग से विहार हो रहा है | यह सुनकर तो जैसे मन में एक नयी तरंग दौड़ पड़ी हो | हम सब बस में से जल्दी जल्दी उतरते है ओर तभी हमें आचार्य श्री की पहली झलक के दर्शन मिलते है | आचार्य श्री के दर्शन पाकर हमारे टूटे मन को एक सम्बल मिला और हमने सोचा कि चलो , आज आचार्य श्री के विहार में ही सम्मिलित हो जाते है |
कहते है न कि जो होता है , अच्छे के लिए होता है | आज इस यात्रा के माध्यम से ही हमें आचार्य श्री के विहार में सम्मिलित होने का पहली बार अवसर मिला | 'ईर्या समिति' किसे कहते है , यह आचार्य श्री के विहार में जाना | आचार्य श्री की नजर पूरे रास्ते नीचे थी और जमीन पर चल रहे सूक्ष्म जीवो के प्रति संवेदना व्यक्त कर रही थी | जगह-जगह ग्रामीण व्यकि आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन के लिए पलके बिछाए बैठे थे |
आचार्य श्री के साथ विहार करते हुए हम पटेरा जी पहुंचे और वहां आचार्य श्री आहार चर्या के लिए रुक गए | यह पटेरा जी गांव कहने को तो बहुत ही छोटा सा गांव है, पर आज इस गांव की किस्मत किसी महानगर जैसे दिल्ली की किस्मत से भी बड़ी प्रतीत हो रही थी क्यूंकि आचार्य श्री आज उसकी धरा पर पधारे है |
आचार्य श्री तो ऊपर मंदिर में चले गए और सारी भीड़ उनके पीछे | हम लोग बाहर ही रह गए और सोचने लगे कि अब क्या करें | पहले सोचा कि पटेरा ही में रुक जाते है और यही पर शुद्ध वस्त्र धारण करके आहार चर्या में शामिल हो जाएंगे | पर वहां उचित व्यव्श्था न देखते हुए , हमने बिना पल गवाए यह सोचा कि चलो कुंडलपुर चलते है और आहार चर्या तक नहा धोके फिर से पटेरा जी आ जायेंगे |
बाबा के आशीर्वाद से जैसे ही हम पटेरा से बाहर निकले, हमें एक दम से एक अंकल मिल गए जो कुंडलपुर ही जा रहे थे | हम लोग उनके साथ उनकी गाडी में बैठ गए और कुंडलपुर पहुंच गए |
कुंडलपुर पहुंच कर हमने सोचा कि चलो एक रूम की बात कार्यालय में जाकर कर लेते है, पर वह इतनी भीड़ थी कि रूम मिलना असम्भव सा ही प्रतीत हो रहा था |
फिर अचानक से हमें एक आंटी मिलती है और उनसे हम पूछते है कि क्या उनके आवास स्थल में हम फ्रेश हो ले | आंटी ने बड़े ही प्रेम से हमारी विनती सुन ली और अपने आवास स्थल में फ्रेश होने के लिए अनुमति दे दी |
यह भी बड़े बाबा का आशीर्वाद था कि हमें एक दम से फ्रेश होने के लिए रूम मिल गया | हम लोग खुश थे क्यूंकि अब हम समय से आहार चर्या देखने के लिए पटेरा जी पहुंच सकते थे | पर यह क्या , जैसे ही हम अंदर रूम में पहुंचे , हमें पता चला कि हमारे पास तो सफ़ेद धोती है ही नहीं और आचार्य श्री और संघ सिर्फ सफ़ेद धोती वालो से आहार लेते है |
अब एक और समस्या जान को खड़ी हो गयी | अब क्या करें ? पर लगता है उस दिन बड़े बाबा जी हमारा हर पल साथ दे रहे थे | जैसे ही हम फ्रेश होकर बाहर आते है , तो हमें एक फ्लेक्स लगा मिलता है , जिस पर लिखा था कि :' शुद्ध सोले के सफ़ेद धोती दुप्पटे के लिए संपर्क करे |'
हम एक दम से उन दीदी के पास पहुंचे और उन से सोले के वस्त्र लिए(पॉलिथीन में पैक्ड) और पटेरा जी के लिए निकल पड़े | इस बार भी हमें एक सज्जन मिल गए जो छत्तीसगढ़ से आचार्य श्री के दर्शनार्थ आये थे | उन्होंने हमें आराम से समय पर पटेरा तक पंहुचा दिया |
पटेरा पहुंच के हमने देखा कि वहां भीड़ पहले से बढ़ गयी है और वहां आचार्य भक्ति चल रही है | आचार्य भक्ति के बाद आचार्य श्री आहार के लोए उठते है| पर अभी समय था , तो हमने वहां पर विराजमान अन्य मुनियों के दर्शन किये और थोड़ी देर सौम्य सागर जी महाराज के पास बैठ गए |
फिर थोड़ी देर में , हम ने सोले के शुद्ध वस्त्र धारण किये और उन लोगो के समीप जाकर खड़े हो गए , जो पहले से ही वहां पड़गाहन के लिए खड़े थे |
पहले हम एक दीदी के पास उनकी अनुमति लेकर उनके ग्रुप के साथ खड़े हो गए , पर फिर हमने सोचा कि शायद यहाँ पर आचार्य श्री का आहार न हो और हम उनके ही बगल में एक दूसरे अंकल आंटी के साथ उनकी अनुमति लेकर खड़े हो गए |
आचार्य श्री सीढ़ियों से नीचे उतरते है | चारो तरफ 'हे स्वामी, नमोस्तु ,नमोस्तु ,नमोस्तु ' की वाणी गुंजायमान होने लगती है जो मेरे कानो को एक अलग सा सुखमय अनुभव प्रदान करती है | हम आचार्य श्री के राइट साइड पर खड़े थे | मेरे मन ने कहा कि अगर आचार्य श्री राइट साइड को मुड़े तो आज कुछ अच्छा वाला है तेरे साथ |
और यह क्या | आचार्य श्री राइट साइड को ही मुड़ जाते है | मैं बहुत बहुत खुश हुआ | आचार्य श्री धीरे धीरे आगे बढ़ते है और एक दम से हमारे बगल वाले अंकल (जहां दीदी भी खड़ी थी ) , वहां पर रुक जाते है | सब लोग आचार्य श्री की परिक्रमा करने लगते है|
हम भी बिना सोचे समझे उन्ही लोगो के साथ हो लेते है और आचार्य श्री की परिक्रमा करने लगते है | परिक्रमा करते करते मेरा मन बहुत ज्यादा ख़ुशी के मारे पागल हुआ जा रहा था और जो उम्मीद, जो आशा आचार्य श्री को आहार देने की ४ साल पहले संजोयी थी , वह भी जोर जोर से अठखेलिया खेलने लगी |
परिक्रमा करने के बाद सब लोग आगे बढ़ते है , उन सज्जन के घर की ओर, जिनके यहाँ आहार था | हम भी उन अंकल के साथ ही हो लिए | वो अंकल घर के मुखिया थे , जिनका नाम श्री प्रेम जी था | हम उनके साथ चलने तो लगे , पर मन ख़ुशी के साथ साथ डर भी रहा था और यह डर हर कदम के साथ बढ़ता जा रहा था | हम इस ग्रुप के साथ हो तो लिए थे , पर भीड़ को देखते हुए हम सोचने लगे कि क्या पता हमें अंदर ही न जाने दिया जाए | मन में अलग अलग विचार आ रहे थे पर पता नहीं क्यों, एक आशा भी थी कि आज तो कुछ अच्छा ही होगा |
हम उन अंकल के साथ साथ धीरे धीर आगे बढ़ते है और उनके साथ ही उनके घर में एंटर कर लेते है | आचार्य श्री भी आ जाते है और एक दम से दूसरे लोग एंट्री गेट बंद कर देते है |
चलो अब हम किसी तरह अंदर तो आ गए, पर असली परीक्षा तो अब थी हमारी | वहां अंदर भी काफी लोग आ गए थे | हालांकि , वो सभी उनके घर वाले ही थे, जो काफी दिनों से कुंडलपुर में चौक लगा रहे थे और जिन्हे आज इतने दिनों बाद यह मंगल अवसर मिला था |
इतने अधिक लोगो को देखकर हम लोगो को उस कमरे से बाहर कर दिया गया, जिसमे आचार्य श्री का आहार हो रहा था | मन फिर से टूट गया कि मंजिल के इतने पास होकर भी मंजिल तक पहुंच नही पाएंगे | पर फिर भी हमने हिम्मत नहीं तोड़ी, और हम चुप चाप पीछे लाइन में खड़े रहे |
हमने कई बार कोशिश की कि हम किसी तरह उस कमरे में घुस जाए | हमने उस भाई से भी कही बार कहा, जो भीड़ कंट्रोल कर रहा था हमें सिर्फ एक बार अंदर आने का मौका दे दे पर हम हर बार असफल ही हो रहे थे |
अचानक से एक अंकल आते है और उस भीड़ कंट्रोल करने वाले लड़के को डांटते है | इसके परिणामस्वरूप वो सबको अंदर आने देता है |
अब हम कमरे में तो घुस गए | अब बारी थी कि आचार्य श्री को आहार देने का अवसर कैसे मिले ? मैं एक भैया एक पास जाकर खड़ा हो गया , जो आचार्य श्री को एक टॉवल से हवा कर रहे थे | मैंने उनसे कहा कि मैं करूँ क्या हवा ? उन्होंने मना कर दिया |
मैं फिर चुप चप वहां खड़ा हो गया | मैंने सोचा कि शायद हमें अवसर न मिले आचार्य श्री को आहार देने का , इसलिए जो भाई मेरे आगे आचार्य श्री को आहार दे रहे थे मैंने उनके हाथ को ही टच कर लिया कि चलो इसी तरह आहार देने का मौका मिल गया, इसी से संतोष ले लो |
पर शायद भगवान को कुछ और ही मंजूर था | वो भाई मुझे एक दम से उनके हाथ वाली कटोरी पकड़ा देते है जिसमे दाल होती है | मैं बता नहीं सकता कि मैं कितना खुश हुआ कि चलो finally मेरी बारी आ ही गयी |
पर यह क्या जैसे ही मैंने चमच में दाल ली और आगे आचार्य श्री को देनी चाही , आचार्य श्री ने दाल लेना ही बंद कर दिया |
मुझे ऐसा लगा कि कितना bad luck है मेरा, जैसे ही दाल वाली कटोरी आई , आचार्य श्री ने दाल लेना बंद कर दिया |
मैं १-२ min वहाँ चुपचाप खड़ा रहा और आचार्य श्री को समीप से बस निहारता रहा | एक दम से मुझे एक आंटी से एक कलश लेने का मौका मिलता है जिसमे जल में लाल रंग की कोई औषधि मिली होती है |
वो कलश मेरे हाथ में आता है और मैं आचार्य श्री को वो जल देने के लिए हाथ आगे बढ़ाता हूँ | पता नहीं क्यों ,मेरे हाथ काँपने से लगते है | शायद मेरे हाथो को कांपता हुआ देखकर आचार्य श्री मेरी तरफ देखते है और मुस्कराने लगते है |
मैं बता नहीं सकता कि मैं कितना कितना khushhhhhhhhhhhhhhhhh हुआ | मैंने आचार्य श्री को वो औषधि वाला जल दिया और वो कलश अपने दोस्त आयुष को पकड़ा दिया जो मेरे पीछे ही खड़ा था |
औषधि देकर मैं बाहर आ गया और आयुष व वैभव भी आचार्य श्री को आहार देकर बाहर आ गए | हम सब बहुत प्रसन्न थे |
इसके बाद हम सबने मिलकर आचार्य श्री की आरती करके उन्हें उनके संयम का उपक्रम उनकी पीछी सौंपी | फिर हम आचार्य श्री के साथ मंदिर तक गए |
एक आशा , एक उम्मीद जो ४ साल से मन के किसी कोने में सोई पड़ी हुई थी, आज उसके पुरे होने पर वह उम्मीद , वह आशा पुरे संतोष के साथ खिल खिलाकर हँस रही थी |
मन में ख़ुशी थी पर साथ ही साथ एक कर्तव्य का बोध भी था | हम सबने मन ही मन वादा किया कि जिन हाथो से आज आचार्य श्री को आज आहार दिया है, उन हाथो से कभी भी कोई बुरा कार्य नहीं करेंगे, किसी जीव को कभी नहीं सतायेंगे |
इसके बाद हम पटेरा से वापिस कुंडलपुर आ गए और वहां हमें हमारे पुराने दोस्त ऋषभ जैन और नमन जैन अचानक से मिल गए |
आज मन में पूरा आत्मविश्वास था कि इस दुनिया में कोई भी चीज असम्भव नहीं | अगर तुम पूरी शिद्दत से किसी चीज को पाने की इच्छा रखो , तो यह पूरी कायनात तुम्हे उससे मिलवाती है |
इस तरह हमारी यह आचार्य श्री को आहार देने की अनुभव यात्रा सम्पन हुई | मैं नहीं जानता कि आज किस के निमित्त से हमें आचार्य श्री को आहार देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | इसलिए मैं इस अनुभव यात्रा में जिस जिस ने भी हमारी हेल्प करी, मैं उसका तहे दिल से शुक्रिया करना करना चाहता हूँ | चाहे वह गाडी वाले अंकल हो या धोती वाली दीदी या जिनके घर में हम आहार दे पाये या वैभव जो पहली बार हमारी साथ आचार्य श्री के दर्शन करने आया , मैं सबको धनयवाद देता हूँ |
हो सकता है इस पूरी अनुभव यात्रा में हमसे कोई गलतियां हुई हो, उन सब के लिए भी मैं सबसे क्षमा चाहता हूँ |
४ साल पहले शुरू हुई इस आध्यात्मिक यात्रा में काफी लोग जुड़े | इस यात्रा के दौरान हमने काफी नए दोस्त बनाए तो कई पुराने दोस्तों के साथ रिश्ते मजबूत हुए |मैं उन सभी दोस्तों को भी शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ क्यूंकि उनकी वजह से यह यात्रा ४ सालो तक जीवंत रह सकी |
आज मैं एक नयी उम्मीद , एक नयी आशा करता हूँ कि आने वाले समय में हम सब मिलकर चौका लगाएंगे और आचार्य श्री का हमारे यहाँ पड़गाहन होगा और हम सब अच्छे से आचार्य श्री को आहार दें |